उपन्यास का नाम: देवालिका
उपन्यासकार: लक्ष्मीकान्त शुक्ल
प्रकाशक: राजमंगल प्रकाशन
प्रथम संस्करण : 2020
कुल पन्ने: 341
रेटिंग: 4/5 स्टार्स
लक्ष्मीकान्त जी की लिखी हुई दूसरी उपन्यास 'देवालिका' महाभारत की घटनाए और कुछ प्रमुख पात्रो पर आधारित है। इस उपन्यास की कहानी काशी के राजकुमार धनंजय, शेषालय की राजकुमारी देवालिका और मगध के राजा दुर्जय के बीच की त्रिकोणीय प्रेम कहानी पर आधारित है। कहानी की शुरुआत होती है लक्ष्मण शुक्ला से जो की एक फ्रीलांस लेखक और पत्रकार है। लक्ष्मण जी मूलतः पौराणिक घटनाओं से जुड़ी हुई रहस्यमयी कहानी लिखने के लिए जाने जाते है और इसी के चलते उनके सम्पादक उन्हे एक रहस्य को उजागर करने का दायित्व देकर उड़ीसा के महेन्द्रगिरि भेजते है। यह रहस्य जुड़ा है महान ब्राह्मण तथा भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी से। पुराणों और कथाओं के अनुसार माना जाता है की वो चिरंजीवी हैं और वर्तमान में उड़ीसा के महेंद्रगिरि के पर्वतों में रहते है। इस यात्रा का निमन्त्रण पा कर पहले तो लक्ष्मण शुक्ला जाने से मना करते है, क्यूँकि रास्ता जोखिमों से भरा है। पर जब उन्हें पता चलता है की तीन महीनो की इस खोज में अनन्या जी उनकी सहकारी होंगी, तब वो फौरन जाने को राजी हो जाते है।
अब उस खोज में क्या होता है, क्या वाकई उन्हें परशुराम जी के साक्षातकार हो पाता है या नही? इन सारे सवालो के जवाब जानने के लिए आपको ये किताब पढ़नी होगी।
मुझे इस उपन्यास में जो बात सबसे ज्यादा पसंद आया वो हैं इस उपन्यास में दी गयी जानकारियाँ। मुझे बहुत सारी नई बातें इस उपन्यास को पढ़के पता चला। दुसरी खास बात है लक्ष्मीकान्त जी की लेखनशैली। जिस खुबसुरती से उन्होने महाभारत की घटनाओ से प्रेरित हो कर इस कहानी को बुना हैं, वो वाकई काबिल ए तारिफ हैं। साथ ही शब्दों का चयन भी बहुत अच्छा लगा।
तीसरी अनोखी बात मुझे जो अच्छी लगी वो है कविताओ के माध्यम से कहानी के अलग अलग धागे को बुनना। मेरी पसंदीदा पंक्तियों मे से एक आपके साथ शेयर कर रहा हूँ :
" वो राजकुमारी तन की धारा में
बह चुकी थी।
तन-मन राजकुमार को अर्पण कर
प्रेम समर्पित हो चुकी थी
कोई चाह नही थी अब उसमें
कहानी उसकी ऐसी लिख चुकी थी।"
ओवरऑल, काफी अच्छा अनुभव रहा। मैं इस उपन्यास को 4 स्टार्स देता हूं और साथ ही आपसे गुज़ारिश करूँगा की इसे जरूर पढ़े।
हैप्पी रीडिंग
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